2016-09-03

समय



राम एकवाल यादव

               
जे निर्वाध
पथपर लपइकरहलके
केओ रोकिकय पूछलक
कथिककेर हरबरी एना
कतौक भूकम्प या प्रलय
जे प्रतीक्षित छल
आगमन भेल अछि ।
               
हतास एवम् निराश होइत
दूनु नयन विस्फारित करैत
अन्वेषणात्मक दृष्टि घुमबइत
जोरस कल्लोल करइत
विक्षोभित आवाज मे बजलाह
के कहा छी !
चाक्षुष्य अवलोकन नहिभेल
अपन आतुरमे विध्न केनाभेल ।
               
अभय भऽ गर्जन करैत
अदृष्य सगौरव सम्झौलन
सठ्हम समयछी
हमरा नहिचिन्हलौं
हम ऊँछी, त्रिलोक छी
हमरा मे सव अन्तर्भूत अछि ।
               
व्यंग्य अओर हास्यमिश्रित
निरीक्षणात्मक लोचन घुमबइत
दग्घ भऽ ललकारइत सम्वोधन कयलन
अरे समयनिरवधि अन्तहीन
सत्ययुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग
सकल युगक प्रर्वतक
अप्रकट अलोकित अनन्तकाल
मानव भऽ प्रकट भऽ आउ
अपनेक गति मत्र्यलोकमे
द्विगुणित भऽ अहंकारक लोप होयत
पार्थिव अपार्थिवक परिमेय ज्ञात होयत ।
               
हुनकरकटुक्तिसहितक उक्तिवैचित्रय
समयके मोनपरल
आतुर भेल हुनकासहजबइत
आर्शीवचन कयलनहे मानव
अहाक आतुरता
चीरकालपर्यन्त रहौक
समयक यान्त्रिक गणनामे
खरिहानक मेहक बयल सदृश
भूभवचव्रmमे नृत्यवत् रहु ।

                                                

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