2016-10-02

देवी मैया













रोशन जनकपुरी

देवी मैया !
दऽ सकै छी तऽ दिय जवाब
होइ छै किया
सब दिन
खाली मौगिए डाइन
आ मनसा भगता ?
देवी मैया !
अहीं सन मौगी
समेटै छै अपनामे
सिर्जनाके बून्द
आ, सिरजै छै
मनसो आ मौगियो,
देवी मैया !
दऽ सकै छी तऽ दिय जवाब
मौगिए सन अहाँ
पूजल जाइछी
आ अहीं सन मौगीकेँ
कहल जाइछै किया डाइन ?
पिआएल जाइ छै गूँह–मूत,
देल जाइ छै
वर्वर सामूहिक हत्याके दण्ड
आ बेर–बेर दइत रहैत अइछ
सलामी,
रखैत अइछ साक्षी
अहींके, मनसा ।
देवी मैया !
अहाँके याद अइछ
नचबै त तरुआइर
आ बरका–बरका मोंछबला
मुण्डमाल पहिरने अपन चित्र ।
देवी मैया !
की अहाँंके बूझल अइ
मनसा, अहाँंके ओ चित्र
रखने अइछ जो गाकऽ
मु दा जीवन बिना,
आ बन्न कऽ दे ने अइछ
एकटा को ठरीमे वा गहबरमे
बना कऽ काठ–पाथर
आ माइटक थु म्हा ।
दे वी मै या !
कि अहाँकेँ लगैया नीक
सालमे एक बेर पुजाइत
आ भइर साल
दण्ड भोगैत रहब मौगी होबऽके
बेटी–पत्नी आ मायक रुपमे ।
देवी मैया !
कहि सकैछी तऽ कहू
एकटा मौगीके रुपमे
कहियो रहि सकैत छी अहाँ ं
स्वतन्त्र ?
देवी मैया !
धूप, धुम्मन आ गुगुलक
आँंइख–कान आ नाकमे घुसियाइत
तिक्ख धूँंआँक बीच
मूड़ी झँंटैत
करताल भँंजैत
भगता सबके मन्तरसँ
मनसाएल
मर  ीआ मलेछिया
कहियाधइर ढोइत रहत
मौगी होबाक पीडा ?
मुदा, देवी मैया !
बूझल अइछ हमरा
मायक रुपमे
आ शक्तिक रुपमे
स्थापित कऽ कऽ
कऽ लेने अइछ कैद
अहाँंकेँ,
आ कऽ लेने अइछ कब्जा
अहाँंक सभ शक्ति ।
आ बूझल अइछ इहो
मौगी,
होएत नइँ जाधइर लैस
ज्ञान आ संघर्षक हथियारसँ
ने तऽ अपने स्वतन्त्र होएत
ने अहाँ ।

घिक्कारः सन्दर्भ अपने

कृष्ण भक्त श्रेष्ठ

पहिने–पहिने
आदमी बूढ़ होइत छल
भेवे कएल
हमरा बाबा–दादाके समयमे सेहो
हँ, आदमी बूढ़ भेल
आइ हमरा समयमे
यन्त्रवत्
ओ निरन्तरता पाबि रहल अछि
फरक मात्र एतबे
जे एहि बेर
हम अपनेबूढ भऽ गेलौ
जानि नेजानि किछु औचित्यहीन
आ असान्दर्भिक सेहो
एकटा अनौपचारिक फसिल
कडासँ कडा
वास्तविकतासँ विभत्स
पक्का–पक्की ई केयो अपवाद नहि अछि
जन्मेसँ
घिक्कारे मोचराएल
आइ हम अपने
दोसर घिक्कार जन्मसँ
घिक्कार ! घिक्कार !
(अनुवादः रामदमाल राकेश)

नेपालक भाषा नीति आ भारतीय स्वार्थ


रमेश रञ्जन 
भाषा मामिलामे नेपालमे भारत चकमा खाइत रहल अछि । नेपालक तराइके हिन्दी पट्टीक रुपमे देखबाक भारतीय सत्ताधारी वर्गक प्रयास निराशामे परिणत होइत रहलै । ई नेहरु आ राजा महेन्द्रक विचारधारात्मक रणनीतिक द्वन्द छलै जाहिमे नेहरु विचार दबल रहलै । नेहरु नेपालमे अप्रत्यक्ष शासन, प्रत्यक्ष भाषा, व्यापारिक एकाधिकार, भारतीय सैन्य सुरक्षामे नेपालके रखबाक प्रयत्न करैत रहल । राजा महेन्द्रक मण्डले राष्ट्रवाद नेहरुक एहिसभ सूत्रके काटिकऽ एकभाषिय नीति, शासकीय केन्द्रियता, भारत आ चीनसँ समदूरीक सिद्धान्तके तत् चतुराइसँ स्थापित कऽ देलकै जे भारत गोंगियाएल तँ मुदा बाजि नइ सकल । बदलामे किछु नदी, पहाड़ आ सामरिक महत्वक जगह नेपाल भारतके नजरानाक तौरपर दैत रहलै ।
प्रश्न ई छै जे भारत ६० वर्षधरि नेपालमे हिन्दी भाषाक लेल प्रयास आ लगानी कऽ रहल छल । भारतक कुटनीतिक सारतत्व हिन्दी भाषाक लेल छै । नेपालक भूमिपर भऽ रहल भारतीय कुटनीतिक प्रयासके देखल जाए त ई भ्रम नइ रहि जाइ छै जे भारत नेपालक समथर भूमिमे हिन्दीके लहलहाइत देखऽ चाहैए । नेपालमे हिन्दीक लेल लगानी की छै आ प्रतिफल की ओ भारतीय अधिकारीके हिसाव–किताव रखबाक आवश्यकता नइ छै । किए तँ दुनू हाथे लुटाओल जा रहल छै—हिन्दीक लेल लविंगके नामपर । प्रश्न एतऽ सीधा छै आ उत्तर सेहो सीधा । मुदा ने प्रश्न सीधा रहऽ देल जा रहल छै आ ने उत्तर । भारतके विहार, उत्तरप्रदेश सन राज्यके जनता आ नेपाल तराइक जनताक सांस्कृतिक, भाषीय, बेटी–रोटीक समवन्ध आ अन्य किछु मनगढ़न्त भावनात्मक आधार देखाकऽ तराइक जनताके हिन्दी भाषी होएबाक प्रचार कएल जा रहल छै । भारतीय अधिकारी ताहिके लेल भारतीय मिडियाकर्मी, नेपालक किछु संचार आ साहित्यसँ सम्वद्ध व्यक्ति आ राजनीतिक दलक नेतासभके प्रयोगमे लबैत रहल अछि । भारतीय अधिकारी एहि बातके कहियो समीक्षा करबाक कोशिस नइ कएलक जे भारतमे नेहरुक हिन्दी पट्टीक अवधारणा कोना सर्वस्वीकार भऽ गेलै आ नेपालमे किए ठीक ओएह फर्मूला डेट एक्सपाएर ओषधि भऽ कऽ रहि गेलै । कहबाक जरुरति नइ दुनू देशक समान चाम, भाषा, भोज्य समानता आ आर किछु समानताक आधारपर एक्के रंगक डाइग्नोसिस करबाक एकटा गम्भिर भूल छै । भारत आ भारतीय रणनीतिकार नेपालक मिथिला, भोजपूरा आ अवधक जनता आ भारतक इएह भाषा बजनिहार जनताक बीच भिन्नता कतऽ छै । ओहि तन्तुके नइ पकड़ि पाएल अछि । भारत जखन स्वतन्त्रताक आन्दोलन लड़ैत रहए, गान्धी आ नेहरुक नेतृत्वमे स्वाधिनताक आन्दोलनके एहि पट्टीक जनतामे हिन्दी आ खाधीके शस्त्रक रुपमे व्याख्यायीत कएल गेलै । स्वाधिनताक लेल एहि दुनूक स्वीकारोक्तिक विकल्प नइ छलै । खड़ी बोली भारतक ओहि क्षेत्रक जनताक बोली तँ नइ छलै मुदा एकटा सिन्थेटिक भाषा भेलाक कारण बहुत दुरुहो नइ बुझेलै । कार्यक्रम, उत्सव, आ औपचारिक क्षेत्रमे ई भाषा बाजऽ जाए लगलै । सरकार संरक्षण आ शिक्षाक माध्यमक कारणे रसे–रसे भारतक हिन्दी पट्टीमे ई भाषा विचरि रहल अछि । खास अवरोध नइ देखाइ दै छै । मुदा नेपालक तराइमे फर्मूला रणनीतिक असफलताक विश्लेषण कएल जाए तँ इएह बुझाइ छै भारतीय अधिकारी विगतमे सेहो ढंगसँ सूचना संकलन आ विश्लेषण नइ कऽ पाबिरहल अछि । नेपालक एहि पट्टीक जनताके राजनीतिक समाजशास्त्रिय आ उत्पादन सम्वन्धपर विचार कएने बिना कोनो धारण बनाएब अपनाके अन्हारमे रनखब अछि । जखन भारतमे साम्राज्यवाद विरुद्ध स्वाधिनताक लड़ाइ तलैत रहै तखन नेपालमे ओहि पट्टीक जनता अपने देशमे अनागरिक सन अवस्था भोगैत रहए । जखन भारतमे मन्दिर–मस्जिद विवादमे पुरा देश धार्मिक उन्मादक चरमपर पहुँचल रहए, मण्डल कमीशनक विवाद बड़े–बड़े नेताके राजनीतिकभविक्ष्यक रेखाचीत्र खींच रहल रहै ओहि समयमे नेपालक तराइक जनता भरि पेट भात खा कऽ निसभेर सूतल नइ रहए ओ जनयुद्धक सरंजाम कऽ रहल रहए । जेना बेटीक वियाहमे एक–एक चीज जोड़ैत अछि लोक, जेलेटिन, बम बनएबाक तरिका, कटुआ पेस्तोेल, कुक्कर बम, विद्युतीय धराप बनएबाक तरिका  किछु गोली–गट्ठा आ तकर प्रशिक्षण लेबऽमे वयस्त रहए । एहिठाम माक्र्स, लेनिन आ माओ विचारधारा चूल्हि, चौका, खेत–खरिहान सभतरि अपन पैठ बनौलकै । तें एहिठामक लड़ाइ आ लड़ाइक मनोविज्ञान भारतीय अपिधकारीक विश्लेषणसँ पृथक छै । भारत आ नेपालक सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितिमे गम्भिर मतभेद रहलै । एहि मतभेदक अन्तरवस्तुके नइ बुझबाक कारण भारतम चर्तुयता परिणामक स्तरपर निरशाजनक रहलै ।
हमरा जनिते एखनुक अवस्थापर गौर कएल जाए तँ कनेको भांगठ नइ रहि जाइ छै जे भारत भाषाक मामिलामे कि चाहैत अछि । ओ एखन कि सोचैत अछि आ अपना सोचके परिणाम धरि पहुँचएबाक लेल कोन बाट निर्धारण कएने अछि । हमरा विचारे सभ किछुु स्पष्ट छै । नेपालक राजनीतिक संक्रमणक कमजोर नसके पकड़ि कऽ भारत सांसदक माध्यमसँ हिन्दीक खम्भा गाड़ऽ चाहैत अछि । कमजोर सरकार, मधेशवादी दलक विकाउ चरित्र आ माओवादीक सत्तामे जएबाक धड़फड़ी संसदमे पहुँचल भाषा समवन्धी विधेयकके भारतीय स्वार्थ अनुसार परिवर्तित करा सकैए । लगै छै नेपालक भाषा सम्वन्धी विवादक भूकम्पक केन्द्रमे हिन्दीके रखल जा चूकल छै । साउथ व्लक नववर्षसंगे लाजिम्पाटमे जरुर किछु उत्कृष्ट मदिराक खेप पहुँचाओत ।
(ई लेख २०६७ सालमे तत्कालिन व्यवस्थापिका संसदमे भाषासम्बन्धि विधेयक बहसमे अएलाक सन्दर्भमे लिखल गेल छल ।) 

मैथिली आलेख सञ्चयन आ सतञ्जा विमोचित

प्रा. रामावतार यादव लिखित आलेख सभहक संग्रह मैथिली आलेख सञ्चयन आ दिगम्बर झा दिनमणिक सतञ्जा विमोचित भेल अछि । मैथिली विकास कोष धनुषा एहिके प्रकाशन कएलक अछि ।

मैथिलीक वर्तनी, रुपविज्ञान, ध्वनिविज्ञान, समाज भाषा विज्ञान, शब्दकोषशास्त्र, ऐतिहासिक भाषा विज्ञान, भाषा मृत्यु आदि विषयपर लिखल आलेख एहिमे संग्रहित अछि । विभिन्न पत्रपत्रिका, जर्नल आदिमे यादव लिखित मैथिलीक भाषा विज्ञानसँ सम्बन्धित लेखसभके एक्कहिटा किताबमे पाठकके सहजहि उपलब्ध भेल अछि ।
पुस्तकमे १६ टा आलेख संकलित अछि । मैथिली भाषा विज्ञान पुस्तककेँ समीक्षा, गोविन्द झाक मैथिली शब्दकोष पढ़ला सन्ताँ, साँय बहुमे गप्पसप्प कोना करीः महेन्द्र मलंगियाक नाटक सन्दर्भमे, मैथिली शब्दकोष ओ शब्दसङ्ग्रहः ऐतिहासिक सर्वेक्षण जेहन आलेखमे शब्दकोषसँ लऽ कऽ ग्राम्य जनजीविकाके बोलीधरिके भाषा वैज्ञानिक दृष्टिएँ शल्यकृया कएलगेल अछि ।
मैथिलीमे उपलब्ध शब्दकोष आ निर्माणक क्रममे रहितो पुरा नईं भऽ सकल शब्दकोषक सन्दर्भमे पुस्तकमे विस्तृत वर्णन कएल गेल अछि । मैथिलीक भूत, वर्तमान आ भविष्यक बारेमे भाषा वैज्ञानिक यादव किताबमे विभिन्न आलेखसँ मैथिलीक नव तस्वीर बनौने छथि । की मैथिली मरि जाएत ? भाषा मृत्युदऽ किछु विचार शीर्षकमे मैथिलीक भविष्यक चुनौती आ सम्भावना फरिछ होइत अछि । तहिना मैथिलीक मानक स्वरुप जे मैथिली भाषाक सम्बन्धमे सभसँ बड़का बहसके विषय अछि ताहि विषयमे यादव भाषा वैज्ञानिक दृष्टिएँ बाट देखौने छथि ।

2016-09-03

समय



राम एकवाल यादव

               
जे निर्वाध
पथपर लपइकरहलके
केओ रोकिकय पूछलक
कथिककेर हरबरी एना
कतौक भूकम्प या प्रलय
जे प्रतीक्षित छल
आगमन भेल अछि ।
               
हतास एवम् निराश होइत
दूनु नयन विस्फारित करैत
अन्वेषणात्मक दृष्टि घुमबइत
जोरस कल्लोल करइत
विक्षोभित आवाज मे बजलाह
के कहा छी !
चाक्षुष्य अवलोकन नहिभेल
अपन आतुरमे विध्न केनाभेल ।
               
अभय भऽ गर्जन करैत
अदृष्य सगौरव सम्झौलन
सठ्हम समयछी
हमरा नहिचिन्हलौं
हम ऊँछी, त्रिलोक छी
हमरा मे सव अन्तर्भूत अछि ।
               
व्यंग्य अओर हास्यमिश्रित
निरीक्षणात्मक लोचन घुमबइत
दग्घ भऽ ललकारइत सम्वोधन कयलन
अरे समयनिरवधि अन्तहीन
सत्ययुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग
सकल युगक प्रर्वतक
अप्रकट अलोकित अनन्तकाल
मानव भऽ प्रकट भऽ आउ
अपनेक गति मत्र्यलोकमे
द्विगुणित भऽ अहंकारक लोप होयत
पार्थिव अपार्थिवक परिमेय ज्ञात होयत ।
               
हुनकरकटुक्तिसहितक उक्तिवैचित्रय
समयके मोनपरल
आतुर भेल हुनकासहजबइत
आर्शीवचन कयलनहे मानव
अहाक आतुरता
चीरकालपर्यन्त रहौक
समयक यान्त्रिक गणनामे
खरिहानक मेहक बयल सदृश
भूभवचव्रmमे नृत्यवत् रहु ।

                                                

चौठचन्द्र पाबनि

मिथिलाञ्चलक चौठचन्द्र (चौरचन) पावनि रविदिन मनाओल जायत । हरेक प्रकारक मनोवांक्षित फल प्राप्तिक लेल घरघरमे चौठचन्द्र पूजा कएल जाइत अछि ।
चौठचन्द्रमे भगवान गणेश आ चन्द्रमाकँे पूजा कएल जाइत अछि । ई पावनिकेँ प्रारम्भ मिथिलामे मिथिला नरेश हेमाङ्गद ठाकुरद्वारा भेल छल । ओ ज्योतिषी छलाह । हुनका एहि तिथिकेँ विशिष्ट शुभफल प्राप्त भेलन्हि तेँ ओ एहि पावनिक प्रचार कएलन्हि । चौठचन्द्रकेँ सम्बन्धमे स्कन्द पुराणमे सेहो चर्चा कएल गेल अछि । ई पावनि प्रायः साँझमे कएल जाइत अछि । गणेश आ चन्द्रमाक पूजा कएलाक बाद हाथमेँ फल लऽ चन्द्रमाकँे दर्शन कएल जाइत अछि ।

चौठचन्द्र दिन संध्या पडल चन्द्रमाके जे देखैत छथि से आनो दिन देखि सकैत छथि आ चौठचन्द्र दिन नहि देखि आन दिन देखएबलाकेँ मिथ्या श्राप लागि जएबाक जनविश्वास रहल अछि । एहिमे खजुरीया, पिरकीया, केरा, खिर, दही, नारियल, खिरा, पुरी, मकैइ, नेवो प्रसादकेँ रुपमे भगवानकँे चढाओल जाइत अछि ।  स्थानीयवासीसभक अनुसार पूजा कएलाक बाद घर(घरमे खिर(पुरी आ ओलक चटनी विशेष रुपसँ खाएल जाइत अछि । 

सरकारी बोर्डमे मिथिलाक्षर


बटुकनाथ 
मैथिली भाषाक लिपिके“ संरक्षण आ विकास करबाक उद्देश्यसँ जनकपुर क्षेत्रके सरकारी आ गैर सरकारी कार्यालयकेँ नाम मिथिलाक्षरमे लिखबाक अभियान शुरु भेल अछि । नेपालमे सभसँ बेशी बाजल जायबला दोसर भाषा मैथिली रहितो एहिके प्रयोग सरकारीस्तरमे नईं भऽ रहल सन्दर्भमे ई अभियान जोड पकडलक अछि । मैथिली साहित्यकार सभा जनकपुरक सरकारी कार्यालयके बोर्डमे मैथिलीमे सम्बन्धित कार्यालयके नाम मैथिलीमे लिखबाक अभियान शुरु कएलक अछि । पहिल चरणमे जनकपुर उपमहानगर पालिकाके बोर्डमे मिथिलाक्षर लिपिमे कार्यालयके नाम लिखल गेल संस्थाक सभापति प्रेम विदेह ललन जनौलनि । जनकपुर उद्योग वाणिज्य संघक समन्वयमे व्यापारिक प्रतिष्ठानसभमे सेहो मिथिलाक्षर लिपिमे संघसंस्थाक नाम लिखबाक अभियान चलाओल जायत । ज्ञातव्य अछि जे काठमाण्डू महानगरपालिकाक बोर्डमे नेपाल भाषाक रञ्जना लिपिके सेहो प्रयोग कएल गेल अछि । सरकारी कामकाजके भाषाके रुपमे मैथिलीके मान्यता दिअएबाक लेल बेर बेर आन्दोलन होइतो राज्यक एकल भाषा नीतिक कारणे ओ सफल नईं भऽ सकल अछि ।  

इजोतः पीड़ा, व्यंग्य आ उत्साह रोशन जनकपुरी


रोशन जनकपुरी 

मैथिली साहित्यमे प्रगतिवादी आ प्रगतिशील रचनाकार सभ अपेक्षाकृत कम अछि । ओनाइतो बात सोलहो आना सत्य अछि, जे नेपालमे मैथिली साहित्यक आधुनिक इतिहास प्रगतिशीले रचनाकार सभसँ शुरु होइत अछि । मुदा जहिना देशमे हरेक परिवर्तनक बाद यथास्थितिवादी आ पश्चगामी शक्तिसभ फेरसँ हावी भऽ गेल, मैथिली साहित्य सेहो एहने स्थितिसँ गुजैर रहल अछि । तथापि प्रगतिशील मैथिली साहित्यकार सभ कमे सही, मुदा एकटा प्रतिवद्ध पंक्ति अछि, जे आमूल परिवर्तनक पक्षमे, न्याय आ समानताक पक्षमे सर्वहारा इजोतक पक्षमे आ गतिशीलताक पक्षमे दृढ़तापूर्वक कलम चलाइब रहल अछि । ई मनकँे सन्तोष आ उत्साह प्रदान करैत अछि । अही पंक्तिमे एकटा उत्साही रचनाकार छथि राजेश विद्रोही ।
राजेश विद्रोही नेपालमे चलल युगान्तकारी दश बरखक महान जनयुद्धक एकटा सक्रिय अंश सेहो छथि । जनमुक्ति सेनाक एकटा सक्रिय आ लगनशील सिपाही कमरेड राजेश विद्रोही जनयुद्धके उठान, पुरान सत्ता संगेके भिषण झड़प, गणतन्त्रकँे आगमनसँ लऽ कऽ समग्र माओवादी आन्दोलनक वर्तमान अवस्था तक कँे सक्रिय कर्ता आ साक्षी दुनु छथि । तें माओवादी आन्दोलनक अतीत आ वर्तमान हुनका सम्वेदित करैत रहनाई स्वभाविक अछि । अपन स्वर्णीम भविष्यक अपेक्षा सहित नेपाली जनता पारम्परिक सत्ता विरुद्ध हथियार उठौलक आ महान जनयुद्धक झण्डा फहरौलक । परिवर्तनक उत्कर्ष दिस आगु बढैÞत ई दश बरखक जनयुद्ध नेपालक पारस्परिक सामन्तवादी सामाजिक संरचनाके जड़ितक हिलौलक । धर्म, राजनीति, अर्थ, संस्कार, संस्कृति किछु नई बाँकी छल जे जनयुद्ध प्रभावसँ अछोप रहल । पारस्परिक सामन्तबादी सत्ता आ वैदेशिक प्रभु सभकेँ उपनिवेशवादी (अप्रत्यक्ष सहि) कमिशनके चक्करमे पिसाइत मजदुर, किसान, दलित, महिला, मुस्लिम, मधेशी, आदिवासी जनजाति आ उपेक्षित क्षेत्र सभ, सभक मुक्तिके साझा स्वर बनल ई जनयुद्ध । युगयुगसँ शासनक दमन चक्रमे पिसाइत तमाम उत्पीडित वर्ग, क्षेत्र, जाति आ धर्म लिंगक बीच अपन मुक्तिक संघर्षक लेल तर्क, औचित्य, चेतना आ साहस प्रदान कयलक ई महान जनयुद्ध । मुक्तिक सपना आ अपेक्षा सहित उत्पीड़ित समुदायक सभ हिस्सा प्रमाणसँ एहि मुक्ति संघर्षमे समाहित भेल । परिणाम सेहो भेटल । देशमे पारम्परिक राजतन्त्रक अन्त भेल । देश आई गणतन्त्र घोषित भेल । अपशोस, मुदा ई परिवर्तन सतहपर मात्र देखाएल । राजतन्त्रक विदाई तऽ भेल मुदा समाजमे व्याप्त सामन्तवादी संरचना कायमे रहल । गणतन्त्र तऽ आयल मुदा एहिपर पुराने राजनीतिक शक्तिसभ खोल ओढ़ि कऽ कब्जा जमा लेलक आ माओवादी जे आमूल परिवर्तनकारी शक्तिक मूल प्रतिनिधि छल ओहिमेसँ किछुके भ्रष्ट आ पतन कराओल गेल आ बाँकी बचलके किनार कऽ देल गेल । वर्तमान गणतन्त्रमे सेहो भ्रष्ट राजनीतिक तन्त्र, घुसहा नेता, दलित उत्पीड़ित, मधेशी, मुस्लिम, आदिवासी जनजाति संगेके भेदभाव, महिला दमन, मजदुर किसान आ गरिब वर्गके उपेक्षा आ वैदेशिक शक्तिके आगु ठेहुनीयाँ रोपने राजनीति आ नेता सभक जमात पुरना दृश्य कायमे अछि ।
राजेश व्रिदोही एहि अतीत आ वर्तमानके सम्वेदित नजैरसँ देखैत छथि । हमरा आगु हुनकर ८० टा कविता अछि । ई सब रचनामे इतिहास आ वर्तमान प्रतिके आक्रोस आ आशा सेहो अभिव्यक्ति भेल अछि । हिनकर कविता संग्रहमे एकटा महत्वपूर्ण बात ई अछि जे अनेक आरोह अवरोहक वादो समग्र मुक्तिके सर्वहरा संसारक स्वप्न जिबिते अछि आ एकरा लेल निरन्तर संघर्ष उत्साह कायम अछि ।
राजेश विद्रोही एहि कविता संग्रहमे भ्रष्ट आ दलाली राजनीति, मजदुर किसानक अधिकार दलित आ महिला चेतना, गरिबी, राजनीतिक धोखाधरी, जाति विभेद, लैंगिक असमानता, भ्रमपूर्ण चुनावी प्रथा, विदेशैत यूवा, मधेशी भेदभाव, विस्तारवादी आ सामा्रज्यवादी उत्पीड़न, छुवाछूत प्रथा, नकली गणतन्त्र आ लाल झण्डा वा सर्वहारा संघर्ष आ सत्ता प्रतिक प्रतिवद्धता विशिष्ट रुपमे अभिव्यक्त भेल अछि ।
आधारभुत वर्गके अपन अधिकारक लेल संघर्षक मोर्चा पर दृढ़ रहबाक हेतु उत्साहित करैत मंगला नामक कवितामे राजेश लिखैत छथि
भरैत रह, खनैत रह
घर पकरिके कानैत रह
बोकैत रह, फेकैत रह
दोसर खातिर मरैत रह
खोरे मंगला परल रह
नै देतौ त अरल रह.......

मजदुर किसान नामक कवितामे श्रमजीवि वर्गक प्रतिके कविके लगाव आ उत्साह देखु केना प्रकट होइत अछि
रौदे बसाते भुखे पियासे
साउनक झरीमे देह भिजाइते
भैरगर काममे पसीना चुआइते
दिन राइत कामक पछाडी
बिहाइर रहल जकर कारण
किसानके उमेर रोगी
मजदुरके देह रोगी
तैयो धरि सुख नै भोगी
जिन्दगी भैर दुखिए रही
उठ जाग हे मजदुर किसान
देश भेलै हरान............

कवि स्वयंम दलित समुदायक प्रतिभा छथि । दलित जे गरीब आ सर्वहारा वर्गमे सेहो गनाइत छथि । अवसर आ समग्र चेतनासँ उपेक्षित सेहो होइत अछि । तें ओकरा लेल अधिकार मात्र मुक्तिके बोध करबैत अछि । एहि संग्रहमे अधिकार नामक कविता गम्भीरता पूर्वक एहि बातके उठबैत अछि । स्वार्थी सामाजिक संरचना आ संघर्षक कोनो विकल्प नइँ अछि, अइ बातके सुन्दरता पूर्वक उठबैत अछि ई कविता
लड़ परतौ
मर जर परतौ
तबही मिलतौ सानसँ......

देशमे गणतन्त्र अएलाक बादो स्वार्थी राजनीतिक अन्त नइँ भेल अछि । राजनीतिक पेट भरुवा साधन बइनकऽ रहि गेल अछि । किछु स्वार्थी नेता सभक लेल पेट नामक कवितामे कवि एहने नेताप्रति व्यंग करैत छथि
छोटगर पेटके मोटगर बात
निर्लज्ज जकाँ खाइत रहत लात....
बुझत आगमक बात
निमन निमन चीज ताकत
लसर फसर करैत रहत...
एहिमे झुठा आश्वासन नामक एकटा और गम्भिर कविता अछि, जे कवितामे छद्म राजनीति आ नेतृत्वक विरुद्ध मोर्चा खोलैत अछि । शील्पक हिसाब ई सुन्दर आ सजीव कविता अछि । तहिना सुन्दर तुकबन्दी आ प्रभावशाली कविता अछि फकरा

उत्पीडक बैनके शासन करै
जे देश बेचके खेने घुरै......
देशमे विस्तारवादी उत्पीड्न कायमे अछि, जे राष्ट्रिय पहिचानके कुण्ठित कऽ रहल अछि । परोसियाके रुपमे कायम रहल प्रत्यक्षसँ बेसी अप्रत्यक्ष उत्पीड़न प्रति कवि राजेश व्रिदोही परोसिया नामक कवितासँ सचेत करबैत कहै छथि
नै सुतियौं अहाँ
परोसी फेनो चुइस लेत
चोर जकाँ लुइट लेत
आ खखरी बना कऽ छोइर देत.....
जनयुद्धसँ देशमे परिवर्तन त भेल मुदा माओवादी आन्दोलनक अवसरवादी सभक वर्चस्व सेहो संगे बढ़ि गेल । एहि स्थिति प्रति कविके वितृष्णा एना प्रकट भेल
क्रान्तिके आड़मे
आयल गण (बन्दुक) तन्त्र
जकर ओजहसँ
चलैय लुट तन्त्र...
तहिनाइते अखन नेपालमे मुख प्रमुख रुपमे दुटा भयंकर सम्प्रदायिकता अछि । जे समप्रदायियकतामे एकटा सम्प्रदायिकता दोसर सम्प्रदायिकताक रुपमे नइँ स्वीकारै बला स्थिति अछि । ओ मधेस आ पहाड़ अछि । जे मधेस खस पहड़िया शासक सभक दमन शोषणमे परैत आएल अछि मुदा अखन राजनैतिक स्वार्थक रुपमे आ अधिकारक रुपमे बहुत सम्प्रदायिकताक बात भऽ रहल अछि । कवि विद्रोही मधेसक एक मिथिलाबासी आ भाषी सेहो अछि । तें दुआरे ओ मिथिला एकटा मधेसक राज्यके रुपमे पहिचान दैत मिथिला नामक कवितामे कहैत छथि
अपन भाषा, अपन भेष
मिथिला नगरी अपन देश....

वर्तमान नेपाली राजनीतिमे मधेश राजनीतिक भेदभाव आ अधिकारक प्रश्न बहुत गम्भिर अछि । मुदा स्वार्थी नेतासभ एकरा सम्प्रदायिक व्यवसाय बना देने अछि । मधेशी नेता विकल जाइए नामक कवितामे एहने भाव कवि विद्रोहीक व्यक्त भेल अछि आ आह्वान सेहो केने अछि
साम्प्रदायिक भड़कावमे
घुमा फिराक ओहे आएल...
अपने घरमे दलाली भेष
कनी निमन मधेशी नेता खोजिऔं मधेश...

कवि स्वयं महान दश बरखक जनयुद्धक एक कुशल सिपाही छथि, तें परिवर्तनक मूल वाहक शक्ति क्रान्तिकारी सभक उपेक्षा प्रति हुनकर आक्रोसपूर्ण गर्जन एना फुटैत अछि गणतन्त्र नामक कवितामे
जे लावलक तकर कोनो वास्ता नइँ
उल्टे ओकर नामपर दलाली
, काला बजारी
देश रहल विदेशी चरित्रके दादागिरी
तें हेतु समाजवादक सपनापर
साम्यवाद देखैत
गणतन्त्र लाबु आ निमन लोकतन्त्र सेहो...
देशमे भेल अधुरा परिवर्तनपर आक्रोश आ साकारात्मक परिवर्तनक पक्षमे सेहो अपेक्षा रखैत इजोत नामक सुन्दर कविता कहैत अछि
समानताके ठाममे असमानता भरि गेल
आब कहु नेता जी की कहली की भऽ गेल
राजनीतिक रोडपर के बैठ गेल....................
एतेक आरोह अवरोहक बाबजुदो कवि विद्रोहीके उत्साह आ साहास कम नइँ भेल अछि । सर्वहारा वर्गक विजय प्रतिक विश्वास आ लाल झण्डा प्रतिक मोह आस्था दृढ़ अछि । लाल झण्डा नामक कवितामे ओ समग्र उत्पीड़ित वर्ग आ समुदायक संघर्षक लेल एहि तरहें आह्वान करैत छथि
देशमे फहरल लाल झण्डा
हरा गेल यौं
फेरसँ उठू शोषित जनता
सभ भऽ एक यौ....

एहे ओ आशावादिता आ सर्वहारा विश्वास कवि राजेश विद्रोहीक कविताके निजित्व आ सौन्दर्य अछि, जे हुनकर प्रगतिवादी कविके पाँइतमे ठाढ़ कऽ दैत अछि । शील्पक स्तरपर चाहे जेहन हो । विचारक स्तरपर ई विशिष्टता प्रायः सभ कवितामे उपस्थित अछि ।
कवि राजेश विद्रोहीक कवितामे शील्पक बात कएल जाएत भाषाक स्तरपर हुनका आंचलिक कवि कहल जा सकैत अछि । कारण हुनकर कवितामे सप्तरी सिरहाक बोली मधुरगर रुपें स्पष्ट सुनाइत अछि । अखनुका मैथिली कवितामे गद्य आ अतुकान्त शैलीक प्रचलन बेसी अछि । किछ छन्द वा लयवद्ध शैलीमे लिखैत छथि । मुद्दा राजेश विद्राहीके विशिष्टता अछि तुकान्त गद्य शैली । करिब करिब फकराके स्तरपर बुझाइत हिनकर कविता सबमे पीड़ा, व्यंग्य आ उत्साह विशिष्ट रुपे एक्के संगे प्रकट होइत अछि । छानल जाए तऽ बहुत कविता गजल आ गीतक रुपमे सुन्दर सेहो अछि । एहि शैलीके विकसित आ परिपक्वता हिनका स्थापित कविके श्रेणीमे ठाढ़ कऽ सकैत अछि, जे मधेशमे मुश्किल अछि ।
संग्रहमे किछ कविता ऐहन अछि जे बहुत रास बात कहबाक हड़बड़ीमे गद्द मात्र रहि गेल अछि । अइपर कविके ध्यान देबाक चाही । पहिनही कहलहुँ, प्रगतिवादी आ जनवादी सिर्जनाक क्षेत्रमे कम लोक छथि आ एहनमे राजेश विद्रोहीक ई कविता संग्रह आश बढ़बैत अछि । क्रान्तिकारी कार्यकर्ता तऽ छथि । मुद्दा अहिनाइते मेहनत करैत रहल तऽ प्रगतिवादी जनवादी साहित्य सिर्जनाक क्षेत्रमे सेहो उज्वल नक्षत्र बनैथ से कामना ।

(           राजेश विद्रोही लिखित मैथिली कविता सङ्ग्रह इजोतसँ साभार )