2014-08-16

बेटीके दहेज नईं, शिक्षा दिअ

स्नेहा झा

"ककरा कहबै के पतियेतै कोइली कने भोरेसँ
मिथिलाके इतिहास जे लिखल सबटा आँखिक नोरेसँ ।"

मिथिलाक गामघरमे लोक ई गीत बरसोंस गबैत आएल अछि । मिथिलाक बेटी जनक नन्दिनी जानकीकँे जीवनकथा जे एकबेर नोरसँ लिखेलै, से युग बदललै, सोच बदललै, जीवनशैली बदललै मुदा मिथिलाक बेटीके नियति नै बदललै । मिथिलाक बेटीक जीवन कथा आई सेहो नोरेसँ लिखाई छइ । पुरुषप्रधान समाज भेलाक कारणेँ मिथिलाक बेटी जीवनमें अपन इच्छाके रंग नै भइर सकली । जिनकर कला आ गुण संसारमें नाम कमोनै अइछ हुनक जीवनकेँ चित्र सबदिन दोसरके हाथमें रहलन । ओ सब दिन अग्निपरीक्षा दैत रहली । बेटीके परिवार आ समाजमे कोन स्थान छै से समदाउनक ई गीतेसँ नीक जकाँ बुझल जा सकैया ।

"बाबा यो धनसम्पती आँहा हारितौं कि हमरो बचबितौं यौ
बेटी हे धनसम्पती घरके लक्ष्मी तुहु पराई छह है ।"


जाहि बेटीके जन्मघर अपन नै बुभैmए ताहि बेटीकेँ दोसर कियो अपन कि बुझत ? समाजमे बेटी विवाह लेल वर बादमे ताकल जाइछइ मुदा दहेजक व्यवस्था बेटीक जन्मेसँ होबऽ लगैछइ । बेटीक शिक्षित आ आत्मनिर्भर बनेनाईसँ बेशी महत्व वरके शिक्षा आ सम्पन्नताकेँ देल जाइछइ । ओना बदलैत समयमे बेटीके पढ़ेबाक चाही से सोच सेहो बइढ़ रहल अछि मुदा अखनो बेटीके आत्मनिर्भर बना अपन पहिचान बनाबऽके लेल नहि भऽ निक घर वर भेटऽके आशसँ पढओल जाईछइ । बेटी अपन पायर पर ठाड़ भऽ अपन पिता या अपन पतिसँ अलग, अपन नाम अपन पहिचान बनाबए ताहिलेल नै । जहिया मातापिता बेटीकेँ उन्नतिपर गर्व केनाई सिखत तहिया बेटीके विवाहके लेल दहेजके बन्दोबस्त नै करऽ परतै । एकदिश मातापिता बेटाके पढालिखाकऽ नाम कमएबाक आशिर्वाद दैत अछि,  दोसर दिश बेटीके निक घर आ निक वर भेटऽके आशिर्वाद दैत अछि । जाहि उमेरमे बेटीकेँ पढ़िलिखिकऽ नाम कमाउ से शिक्षा देबाक चाहि ताहि उमेरमे नीक घरवरके सपना देखओनाइ शुरु भऽ जाइछइ ।

बेटीकेँ शिक्षित आ आत्मनिर्भर बनेबाक मतलब घरपरिवारकँे जिम्मेवारीसँ मुत्तm कऽ देब नै छइ । मुदा बेटी काल्हि जाकऽ ककरो पुतहू बनती ताहि कारणसँ कर्तव्यसँ मातापिता विमुख नै होथि । पढ़ल लिखल आ आत्मनिर्भर बेटी संस्कार आ कर्तव्य निर्वाह नईं कऽ सकती से त नईं छइ । आधुनिक समयमे एकटा सक्षम नागरिक बनएबालेल बेटीकेँ पढेनाइ जरुरी अछि । जँ बेटी नहि पढ़लक त ओ सही आ गलतके पहिचानो नहि कऽ सकत । बेटीकेँ एतेक काबिल बनाबी जाहिसँ जीवनके कठिन घड़ीमे ओ अपन समस्यासँ लड़ि सकए । ओ अपना लेल अपनेसँ किछु कऽ सकए । मुदा एखनो मैथिल समाज अपन बेटीकेँ सासुर विदा करसँ पहिने सब अन्याय, अत्याचार चुपचाप सहऽ के शिक्षा दैत अछि । एखनो सीताक त्यागकेँ उदाहरण दऽ मिथिलाक बेटीसँ अग्निपरीक्षा देबाक अपेक्षा राखल जाइत अछि ।

मुदा आब मिथिलाक बेटीकेँ जीवन कथा बदल पड़त । सब दिन समाजक रीतिकेँ दोष देलासँ किछ नै हएत । आब समय आइब गेलछइ अपनेसँ समाज परिवर्तनके लेल आगा बढ़ऽके, ई संस्कार बदलऽके, मिथिलाके बेटीकेँ पहिचान बदलऽके । बेटीक जीवनक निर्णय सभदिन कियो दोसर किया लेत । बेटीकेँ जीवन कथा हुनक नोरसँ आ ककरो दोसरकँे इच्छाकँे रंगसँ नहि रंगाइ । बेटी अपन पहिचान बनाबए, अपन सफलता अपन इच्छाके रंगसँ जीवनक कथा लिखए । मातापिता बेटीकँे पढालिखाकऽ जँ आत्मनिर्भर बनादैथि त कोनो बेटी अपन जीवन निर्वाहके लेल ककरो दोसरके आशमे नै रहत । बेटीकेँ लेल पढ़ल लिखन वरके खोजी केनाई, बेटीके सुखी जीवनके इच्छा रखनाई गलत नै छइ मुदा मातापिताके बेटीके क्षमतापर सेहो विश्वास करबाक चाही । बेटी तखने खुसी भऽ सकैत अछि जखन हुनका ककरो दोसरके अधिनमें नै रहऽ पड़त । जखन ओ अपन जीवन पुरा आत्मसम्मान सँ बिता सकथि । बेटीकेँ ककरो दोसरके जिम्मामे देबसँ पहिने अपन जिम्मेवारी उठेबाक काबिल बनादि त शायद कोनो बेटी ई गीत नै गओती –
"जाबे हम छलियै मायबाप राजमे औंटल दुध ने सोहाय
आब हम भेलियै परके पुतहुवा मिनती करैत दिन जाय ।”

साभार गोरखापत्र मैथिली पृष्ठ २०७१ साउन १६ गते

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें