2014-07-19

मधुश्रावणी पाबनि

मैथिल नव विवाहिताद्वारा पूजल जाएबला मधुश्रावणी पाबनि बुधदिनस सुरु भेल अछि । एहि पाबनिमे नवविवाहिता १५ दिनधरि व्रत आ पूजा कएल करैत अछि । साओन कृष्ण पञ्चमीसँ साओन शुक्ल तृतीया तिथिधरि मनाओल जाएबला एहि पाबनिमे मूलरुपसँ नाग, नागिन, गौरी आ महादेवके पूजा होइत अछि । पतिक दीर्घायूक कामना आ पारिवारिक सुख समृद्धिक कामनासहित कएल जाएबला पाबनिमे निराहार रहि व्रती १५ दिनधरि कथा सुनल करैत अछि । मैथिल व्राह्मण, कायस्थ आ सोनार जातिमे मधुश्रावणी पूजा करबाक चलन अछि । 
जनकपुरक मन्दिर परिसरमे दूपहरियामे सूर्यक ताप कम होइते मधुश्रावणी पूजा केनिहारि व्रती आ संगी बहिनपासभके भीड लागि जाइत अछि । हरियर साड़ी पहिरने व्रतीसभ गीत गबैत फुल लोढ़ल करैत अछि । बाँसक डाला लेने युवती आ महिलाक झुण्ड टोल टोलसँ निकलिकऽ मन्दिर, फुलबारीसभमे जम्मा होइत अछि । फुल लोढ़िक डाला सजएबाक प्रतिष्पर्धे भेल करैत अछि । अपन समूहक डाला नीक जकाँ सजाबऽ लेल युवती तथा स्त्रीगण नीक नीक फूल लोढ़ि डाला सजबैत छथि । जनकपुरक विवाह मण्डपमे मैथिल ललनाके बेस भीड़ देखल जाइत अछि ।

वर आ कनियाँ प्रतिदिन मधुश्रावणी पूजाक कथा सँगहि सुनैत छथि । जे वर आ कनियाँके सामीप्यता बढएबालेल सहायक होइत अछि । मधुश्रावणी कथामे आबएबला शिव पार्वतीक प्रेम कथासहितके प्रसंगसभमे रति रागके सम्मिश्रण भेटैत अछि जाहिसँ नवविवाहिताके मनोरञ्जन मात्र नहि होइत छन्हि खिस्से पिहानीमे प्रेम, अह्लाद बढेबाक अवसर सेहो भेटैत छन्हि । विदेश या अपन गामठामसँ दूर रहनिहार कतेको लोकके ई अवसर नईं भेटैत छन्हि जे ओ कनिञा संगे रहि कथा सुनथि । तैइयो कथाके अन्तिम दिन वरके उपस्थिति अनिवार्य मानल जाइत अछि । 
साभार मैथिली पृष्ठ गोरखापत्र २०७१ साउन २ गते  

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