हमरे
आइ
हमरा
बिसरि
गेल ।
हम
कहिओ
ई
नहि
सोचने छलहुँ
मुदा,
बात
बिपरित ।
ठीक
छैक,
ओकर
ओहने सोँच ।
मोन
पड़ैया
ओकर
वचपन
तऽ
हृदय
कलैप जाइए ।
की
? लोक
इएह
दिन
लेल
कोन–कोन
बेलना
नहि बेलैए ।
ओ
की
जाने गेलै
मायक
सिनेह
बापक
दुलार ।
शायद,
स्मरण
आबि जाइक
किएक
तऽ
ओहो
आइ
ककरो
माय आ बाप छैक ।
ओ
जेना
आइ
अपन
वच्चाकेँ
सिनेह
करैए
काल्हि
ओकरो
ओहिना
किओ
करैत छल ।
वच्चा
दुध
नहि पिबए
तऽ
मायक
छाती
कनकनाए
लागए
भूखलो
रहि
ओकर
ओ
पेट
भड़ए ।
मुदा,
आइ
ओ
वच्चा
अपनेसँ
दूर
भागए ।
ओकर
अपने
ओकरा
बोझ बुझाए ।
केश
पकिते
हमरा
ओ
रद्दी
कागज बुझए लागए।
मुदा,
ओकरा
बुझए
पड़ैतक
रद्दी
कागज सेहो
काज
अबैत छैक ।
ओकर
अज्ञानता
ओकरा
घेरि लेने छैक ।
कहिओ
ओकरो
केश पकतैक ।
ओकरो
सहारा
चाहबे
करी
ई
चक्रमे
सभकेँ
घुमए पड़त
आ
एहि
सत्यकेँ
नकारल
सेहो नहि जा सकैया ।
तखन
कहब
व्यर्थ
सभक
स्वतन्त्रता
२१
म सदीक बात थिक ।
बुढ़ो
माय बापकेँ
परिवर्तित
होएब आवश्यक ।
साभार
मैथिली पृष्ठ गोरखापत्र २०७१ साउन २ गते
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