मिथिलाञ्चलक चौठचन्द्र (चौरचन) पावनि रविदिन मनाओल जायत । हरेक
प्रकारक मनोवांक्षित फल प्राप्तिक लेल घर–घरमे चौठचन्द्र पूजा कएल जाइत अछि ।
चौठचन्द्रमे भगवान गणेश आ चन्द्रमाकँे पूजा कएल जाइत अछि । ई
पावनिकेँ प्रारम्भ मिथिलामे मिथिला नरेश हेमाङ्गद ठाकुरद्वारा भेल छल । ओ ज्योतिषी
छलाह । हुनका एहि तिथिकेँ विशिष्ट शुभफल प्राप्त भेलन्हि तेँ ओ एहि पावनिक प्रचार कएलन्हि
। चौठचन्द्रकेँ सम्बन्धमे स्कन्द पुराणमे सेहो चर्चा कएल गेल अछि । ई पावनि प्रायः
साँझमे कएल जाइत अछि । गणेश आ चन्द्रमाक पूजा कएलाक बाद हाथमेँ फल लऽ चन्द्रमाकँे दर्शन
कएल जाइत अछि ।
चौठचन्द्र दिन संध्या पडल चन्द्रमाके जे देखैत छथि से आनो दिन
देखि सकैत छथि आ चौठचन्द्र दिन नहि देखि आन दिन देखएबलाकेँ मिथ्या श्राप लागि जएबाक
जनविश्वास रहल अछि । एहिमे खजुरीया, पिरकीया, केरा, खिर,
दही, नारियल, खिरा, पुरी, मकैइ, नेवो प्रसादकेँ रुपमे
भगवानकँे चढाओल जाइत अछि । स्थानीयवासीसभक
अनुसार पूजा कएलाक बाद घर(घरमे खिर(पुरी आ ओलक चटनी विशेष रुपसँ खाएल जाइत अछि ।
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