2016-09-03

इजोतः पीड़ा, व्यंग्य आ उत्साह रोशन जनकपुरी


रोशन जनकपुरी 

मैथिली साहित्यमे प्रगतिवादी आ प्रगतिशील रचनाकार सभ अपेक्षाकृत कम अछि । ओनाइतो बात सोलहो आना सत्य अछि, जे नेपालमे मैथिली साहित्यक आधुनिक इतिहास प्रगतिशीले रचनाकार सभसँ शुरु होइत अछि । मुदा जहिना देशमे हरेक परिवर्तनक बाद यथास्थितिवादी आ पश्चगामी शक्तिसभ फेरसँ हावी भऽ गेल, मैथिली साहित्य सेहो एहने स्थितिसँ गुजैर रहल अछि । तथापि प्रगतिशील मैथिली साहित्यकार सभ कमे सही, मुदा एकटा प्रतिवद्ध पंक्ति अछि, जे आमूल परिवर्तनक पक्षमे, न्याय आ समानताक पक्षमे सर्वहारा इजोतक पक्षमे आ गतिशीलताक पक्षमे दृढ़तापूर्वक कलम चलाइब रहल अछि । ई मनकँे सन्तोष आ उत्साह प्रदान करैत अछि । अही पंक्तिमे एकटा उत्साही रचनाकार छथि राजेश विद्रोही ।
राजेश विद्रोही नेपालमे चलल युगान्तकारी दश बरखक महान जनयुद्धक एकटा सक्रिय अंश सेहो छथि । जनमुक्ति सेनाक एकटा सक्रिय आ लगनशील सिपाही कमरेड राजेश विद्रोही जनयुद्धके उठान, पुरान सत्ता संगेके भिषण झड़प, गणतन्त्रकँे आगमनसँ लऽ कऽ समग्र माओवादी आन्दोलनक वर्तमान अवस्था तक कँे सक्रिय कर्ता आ साक्षी दुनु छथि । तें माओवादी आन्दोलनक अतीत आ वर्तमान हुनका सम्वेदित करैत रहनाई स्वभाविक अछि । अपन स्वर्णीम भविष्यक अपेक्षा सहित नेपाली जनता पारम्परिक सत्ता विरुद्ध हथियार उठौलक आ महान जनयुद्धक झण्डा फहरौलक । परिवर्तनक उत्कर्ष दिस आगु बढैÞत ई दश बरखक जनयुद्ध नेपालक पारस्परिक सामन्तवादी सामाजिक संरचनाके जड़ितक हिलौलक । धर्म, राजनीति, अर्थ, संस्कार, संस्कृति किछु नई बाँकी छल जे जनयुद्ध प्रभावसँ अछोप रहल । पारस्परिक सामन्तबादी सत्ता आ वैदेशिक प्रभु सभकेँ उपनिवेशवादी (अप्रत्यक्ष सहि) कमिशनके चक्करमे पिसाइत मजदुर, किसान, दलित, महिला, मुस्लिम, मधेशी, आदिवासी जनजाति आ उपेक्षित क्षेत्र सभ, सभक मुक्तिके साझा स्वर बनल ई जनयुद्ध । युगयुगसँ शासनक दमन चक्रमे पिसाइत तमाम उत्पीडित वर्ग, क्षेत्र, जाति आ धर्म लिंगक बीच अपन मुक्तिक संघर्षक लेल तर्क, औचित्य, चेतना आ साहस प्रदान कयलक ई महान जनयुद्ध । मुक्तिक सपना आ अपेक्षा सहित उत्पीड़ित समुदायक सभ हिस्सा प्रमाणसँ एहि मुक्ति संघर्षमे समाहित भेल । परिणाम सेहो भेटल । देशमे पारम्परिक राजतन्त्रक अन्त भेल । देश आई गणतन्त्र घोषित भेल । अपशोस, मुदा ई परिवर्तन सतहपर मात्र देखाएल । राजतन्त्रक विदाई तऽ भेल मुदा समाजमे व्याप्त सामन्तवादी संरचना कायमे रहल । गणतन्त्र तऽ आयल मुदा एहिपर पुराने राजनीतिक शक्तिसभ खोल ओढ़ि कऽ कब्जा जमा लेलक आ माओवादी जे आमूल परिवर्तनकारी शक्तिक मूल प्रतिनिधि छल ओहिमेसँ किछुके भ्रष्ट आ पतन कराओल गेल आ बाँकी बचलके किनार कऽ देल गेल । वर्तमान गणतन्त्रमे सेहो भ्रष्ट राजनीतिक तन्त्र, घुसहा नेता, दलित उत्पीड़ित, मधेशी, मुस्लिम, आदिवासी जनजाति संगेके भेदभाव, महिला दमन, मजदुर किसान आ गरिब वर्गके उपेक्षा आ वैदेशिक शक्तिके आगु ठेहुनीयाँ रोपने राजनीति आ नेता सभक जमात पुरना दृश्य कायमे अछि ।
राजेश व्रिदोही एहि अतीत आ वर्तमानके सम्वेदित नजैरसँ देखैत छथि । हमरा आगु हुनकर ८० टा कविता अछि । ई सब रचनामे इतिहास आ वर्तमान प्रतिके आक्रोस आ आशा सेहो अभिव्यक्ति भेल अछि । हिनकर कविता संग्रहमे एकटा महत्वपूर्ण बात ई अछि जे अनेक आरोह अवरोहक वादो समग्र मुक्तिके सर्वहरा संसारक स्वप्न जिबिते अछि आ एकरा लेल निरन्तर संघर्ष उत्साह कायम अछि ।
राजेश विद्रोही एहि कविता संग्रहमे भ्रष्ट आ दलाली राजनीति, मजदुर किसानक अधिकार दलित आ महिला चेतना, गरिबी, राजनीतिक धोखाधरी, जाति विभेद, लैंगिक असमानता, भ्रमपूर्ण चुनावी प्रथा, विदेशैत यूवा, मधेशी भेदभाव, विस्तारवादी आ सामा्रज्यवादी उत्पीड़न, छुवाछूत प्रथा, नकली गणतन्त्र आ लाल झण्डा वा सर्वहारा संघर्ष आ सत्ता प्रतिक प्रतिवद्धता विशिष्ट रुपमे अभिव्यक्त भेल अछि ।
आधारभुत वर्गके अपन अधिकारक लेल संघर्षक मोर्चा पर दृढ़ रहबाक हेतु उत्साहित करैत मंगला नामक कवितामे राजेश लिखैत छथि
भरैत रह, खनैत रह
घर पकरिके कानैत रह
बोकैत रह, फेकैत रह
दोसर खातिर मरैत रह
खोरे मंगला परल रह
नै देतौ त अरल रह.......

मजदुर किसान नामक कवितामे श्रमजीवि वर्गक प्रतिके कविके लगाव आ उत्साह देखु केना प्रकट होइत अछि
रौदे बसाते भुखे पियासे
साउनक झरीमे देह भिजाइते
भैरगर काममे पसीना चुआइते
दिन राइत कामक पछाडी
बिहाइर रहल जकर कारण
किसानके उमेर रोगी
मजदुरके देह रोगी
तैयो धरि सुख नै भोगी
जिन्दगी भैर दुखिए रही
उठ जाग हे मजदुर किसान
देश भेलै हरान............

कवि स्वयंम दलित समुदायक प्रतिभा छथि । दलित जे गरीब आ सर्वहारा वर्गमे सेहो गनाइत छथि । अवसर आ समग्र चेतनासँ उपेक्षित सेहो होइत अछि । तें ओकरा लेल अधिकार मात्र मुक्तिके बोध करबैत अछि । एहि संग्रहमे अधिकार नामक कविता गम्भीरता पूर्वक एहि बातके उठबैत अछि । स्वार्थी सामाजिक संरचना आ संघर्षक कोनो विकल्प नइँ अछि, अइ बातके सुन्दरता पूर्वक उठबैत अछि ई कविता
लड़ परतौ
मर जर परतौ
तबही मिलतौ सानसँ......

देशमे गणतन्त्र अएलाक बादो स्वार्थी राजनीतिक अन्त नइँ भेल अछि । राजनीतिक पेट भरुवा साधन बइनकऽ रहि गेल अछि । किछु स्वार्थी नेता सभक लेल पेट नामक कवितामे कवि एहने नेताप्रति व्यंग करैत छथि
छोटगर पेटके मोटगर बात
निर्लज्ज जकाँ खाइत रहत लात....
बुझत आगमक बात
निमन निमन चीज ताकत
लसर फसर करैत रहत...
एहिमे झुठा आश्वासन नामक एकटा और गम्भिर कविता अछि, जे कवितामे छद्म राजनीति आ नेतृत्वक विरुद्ध मोर्चा खोलैत अछि । शील्पक हिसाब ई सुन्दर आ सजीव कविता अछि । तहिना सुन्दर तुकबन्दी आ प्रभावशाली कविता अछि फकरा

उत्पीडक बैनके शासन करै
जे देश बेचके खेने घुरै......
देशमे विस्तारवादी उत्पीड्न कायमे अछि, जे राष्ट्रिय पहिचानके कुण्ठित कऽ रहल अछि । परोसियाके रुपमे कायम रहल प्रत्यक्षसँ बेसी अप्रत्यक्ष उत्पीड़न प्रति कवि राजेश व्रिदोही परोसिया नामक कवितासँ सचेत करबैत कहै छथि
नै सुतियौं अहाँ
परोसी फेनो चुइस लेत
चोर जकाँ लुइट लेत
आ खखरी बना कऽ छोइर देत.....
जनयुद्धसँ देशमे परिवर्तन त भेल मुदा माओवादी आन्दोलनक अवसरवादी सभक वर्चस्व सेहो संगे बढ़ि गेल । एहि स्थिति प्रति कविके वितृष्णा एना प्रकट भेल
क्रान्तिके आड़मे
आयल गण (बन्दुक) तन्त्र
जकर ओजहसँ
चलैय लुट तन्त्र...
तहिनाइते अखन नेपालमे मुख प्रमुख रुपमे दुटा भयंकर सम्प्रदायिकता अछि । जे समप्रदायियकतामे एकटा सम्प्रदायिकता दोसर सम्प्रदायिकताक रुपमे नइँ स्वीकारै बला स्थिति अछि । ओ मधेस आ पहाड़ अछि । जे मधेस खस पहड़िया शासक सभक दमन शोषणमे परैत आएल अछि मुदा अखन राजनैतिक स्वार्थक रुपमे आ अधिकारक रुपमे बहुत सम्प्रदायिकताक बात भऽ रहल अछि । कवि विद्रोही मधेसक एक मिथिलाबासी आ भाषी सेहो अछि । तें दुआरे ओ मिथिला एकटा मधेसक राज्यके रुपमे पहिचान दैत मिथिला नामक कवितामे कहैत छथि
अपन भाषा, अपन भेष
मिथिला नगरी अपन देश....

वर्तमान नेपाली राजनीतिमे मधेश राजनीतिक भेदभाव आ अधिकारक प्रश्न बहुत गम्भिर अछि । मुदा स्वार्थी नेतासभ एकरा सम्प्रदायिक व्यवसाय बना देने अछि । मधेशी नेता विकल जाइए नामक कवितामे एहने भाव कवि विद्रोहीक व्यक्त भेल अछि आ आह्वान सेहो केने अछि
साम्प्रदायिक भड़कावमे
घुमा फिराक ओहे आएल...
अपने घरमे दलाली भेष
कनी निमन मधेशी नेता खोजिऔं मधेश...

कवि स्वयं महान दश बरखक जनयुद्धक एक कुशल सिपाही छथि, तें परिवर्तनक मूल वाहक शक्ति क्रान्तिकारी सभक उपेक्षा प्रति हुनकर आक्रोसपूर्ण गर्जन एना फुटैत अछि गणतन्त्र नामक कवितामे
जे लावलक तकर कोनो वास्ता नइँ
उल्टे ओकर नामपर दलाली
, काला बजारी
देश रहल विदेशी चरित्रके दादागिरी
तें हेतु समाजवादक सपनापर
साम्यवाद देखैत
गणतन्त्र लाबु आ निमन लोकतन्त्र सेहो...
देशमे भेल अधुरा परिवर्तनपर आक्रोश आ साकारात्मक परिवर्तनक पक्षमे सेहो अपेक्षा रखैत इजोत नामक सुन्दर कविता कहैत अछि
समानताके ठाममे असमानता भरि गेल
आब कहु नेता जी की कहली की भऽ गेल
राजनीतिक रोडपर के बैठ गेल....................
एतेक आरोह अवरोहक बाबजुदो कवि विद्रोहीके उत्साह आ साहास कम नइँ भेल अछि । सर्वहारा वर्गक विजय प्रतिक विश्वास आ लाल झण्डा प्रतिक मोह आस्था दृढ़ अछि । लाल झण्डा नामक कवितामे ओ समग्र उत्पीड़ित वर्ग आ समुदायक संघर्षक लेल एहि तरहें आह्वान करैत छथि
देशमे फहरल लाल झण्डा
हरा गेल यौं
फेरसँ उठू शोषित जनता
सभ भऽ एक यौ....

एहे ओ आशावादिता आ सर्वहारा विश्वास कवि राजेश विद्रोहीक कविताके निजित्व आ सौन्दर्य अछि, जे हुनकर प्रगतिवादी कविके पाँइतमे ठाढ़ कऽ दैत अछि । शील्पक स्तरपर चाहे जेहन हो । विचारक स्तरपर ई विशिष्टता प्रायः सभ कवितामे उपस्थित अछि ।
कवि राजेश विद्रोहीक कवितामे शील्पक बात कएल जाएत भाषाक स्तरपर हुनका आंचलिक कवि कहल जा सकैत अछि । कारण हुनकर कवितामे सप्तरी सिरहाक बोली मधुरगर रुपें स्पष्ट सुनाइत अछि । अखनुका मैथिली कवितामे गद्य आ अतुकान्त शैलीक प्रचलन बेसी अछि । किछ छन्द वा लयवद्ध शैलीमे लिखैत छथि । मुद्दा राजेश विद्राहीके विशिष्टता अछि तुकान्त गद्य शैली । करिब करिब फकराके स्तरपर बुझाइत हिनकर कविता सबमे पीड़ा, व्यंग्य आ उत्साह विशिष्ट रुपे एक्के संगे प्रकट होइत अछि । छानल जाए तऽ बहुत कविता गजल आ गीतक रुपमे सुन्दर सेहो अछि । एहि शैलीके विकसित आ परिपक्वता हिनका स्थापित कविके श्रेणीमे ठाढ़ कऽ सकैत अछि, जे मधेशमे मुश्किल अछि ।
संग्रहमे किछ कविता ऐहन अछि जे बहुत रास बात कहबाक हड़बड़ीमे गद्द मात्र रहि गेल अछि । अइपर कविके ध्यान देबाक चाही । पहिनही कहलहुँ, प्रगतिवादी आ जनवादी सिर्जनाक क्षेत्रमे कम लोक छथि आ एहनमे राजेश विद्रोहीक ई कविता संग्रह आश बढ़बैत अछि । क्रान्तिकारी कार्यकर्ता तऽ छथि । मुद्दा अहिनाइते मेहनत करैत रहल तऽ प्रगतिवादी जनवादी साहित्य सिर्जनाक क्षेत्रमे सेहो उज्वल नक्षत्र बनैथ से कामना ।

(           राजेश विद्रोही लिखित मैथिली कविता सङ्ग्रह इजोतसँ साभार )

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