जन्म मात्रसँ कियो
विद्वान, पण्डित नइँ होइत अछि ।
कोनो निश्चित जाति, कुलमे जन्म
लेलासँ मात्र संस्कृत, वेद, ज्योतिषआदि विषयके ज्ञाता हएबाक सोचके चुनौति
दैत समाजमे बहुतो युवा अपनाके सिद्ध कऽ रहल अछि ।
महोत्तरी जिलाक मटिहानी
गामक विरेन्द्र कापर तेहने व्यक्तित्व छथि । सिद्धान्त ज्योतिष विषयमे
मटिहानीस्थित याज्ञवल्क्य लक्ष्मीनारायण विद्यापीठसँ शास्त्री आ काठमाण्डूक
वाल्मिकि विद्यापीठसँ स्नातकोत्तर केनिहार कापर चर्चित ज्योतिषाचार्य छथि । नेपाल
वान टेलिभिजनसँ प्रसारित ज्योतिष सम्बन्धि कार्यक्रमआदिसँ हिनक विदेशमे सेहो
ख्याति कमौने छथि ।
हिन्दु धर्मक प्रचार आ
प्राचीन ज्योतिष शास्त्रक प्रसारमे लागल कापर अनन्त श्री जगद्गुरु पदवीसँ सम्मानित
व्यक्तित्व छथि । विश्व हिन्दु महासंघ अन्तर्राष्ट्रिय धर्म सभा आ महन्थ सभा
संयुक्त रुपमे कापरके इ पदवीसँ सम्मानित कएने अछि । काशी विद्वत परिषद्, अखिल सनातन धर्म महासभासहितके संस्था एहिके
समर्थक रहल अछि । नेपालमे अनन्त श्री जगद्गुरु पदवीसँ सम्मानित कापर दोसर
व्यक्तित्व छथि, एहिसँ पहिने इ
पदवी चतराधामक बालसन्त मोहनशरणके देल गेलछल । आदि शंकराचार्य जगद्गुरु पद्वी देबाक
चलन सुरु कएने रहथि । ई शैव आ वैष्णव दुनू सम्प्रदायके विद्वानके इ पदवी देबाक चलन
अछि ।
वेद, उपनिषद्आदिके रचनासेहो नेपालमे भेल सन्दर्भमे
एहि पदवीसँ ओ परिवेशकेँ सम्मान भेल कापरक कहब छन्हि । संस्कृत भाषा निश्चित जाति
विशेषके भाषा नइँ रहल कापरके सफलतासँ प्रमाणित होइत अछि । कापर कहैत छथि जे ई
संस्कृत, वेद, ज्योतिषआदि पढ़बालेल सभ स्वतन्त्र अछि, जँ पढ़िकऽ कियो योग्य बनैत अछि त सर्वत्र ओकर
सम्मान सेहो होइत अछि ।
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