2016-10-02

देवी मैया













रोशन जनकपुरी

देवी मैया !
दऽ सकै छी तऽ दिय जवाब
होइ छै किया
सब दिन
खाली मौगिए डाइन
आ मनसा भगता ?
देवी मैया !
अहीं सन मौगी
समेटै छै अपनामे
सिर्जनाके बून्द
आ, सिरजै छै
मनसो आ मौगियो,
देवी मैया !
दऽ सकै छी तऽ दिय जवाब
मौगिए सन अहाँ
पूजल जाइछी
आ अहीं सन मौगीकेँ
कहल जाइछै किया डाइन ?
पिआएल जाइ छै गूँह–मूत,
देल जाइ छै
वर्वर सामूहिक हत्याके दण्ड
आ बेर–बेर दइत रहैत अइछ
सलामी,
रखैत अइछ साक्षी
अहींके, मनसा ।
देवी मैया !
अहाँके याद अइछ
नचबै त तरुआइर
आ बरका–बरका मोंछबला
मुण्डमाल पहिरने अपन चित्र ।
देवी मैया !
की अहाँंके बूझल अइ
मनसा, अहाँंके ओ चित्र
रखने अइछ जो गाकऽ
मु दा जीवन बिना,
आ बन्न कऽ दे ने अइछ
एकटा को ठरीमे वा गहबरमे
बना कऽ काठ–पाथर
आ माइटक थु म्हा ।
दे वी मै या !
कि अहाँकेँ लगैया नीक
सालमे एक बेर पुजाइत
आ भइर साल
दण्ड भोगैत रहब मौगी होबऽके
बेटी–पत्नी आ मायक रुपमे ।
देवी मैया !
कहि सकैछी तऽ कहू
एकटा मौगीके रुपमे
कहियो रहि सकैत छी अहाँ ं
स्वतन्त्र ?
देवी मैया !
धूप, धुम्मन आ गुगुलक
आँंइख–कान आ नाकमे घुसियाइत
तिक्ख धूँंआँक बीच
मूड़ी झँंटैत
करताल भँंजैत
भगता सबके मन्तरसँ
मनसाएल
मर  ीआ मलेछिया
कहियाधइर ढोइत रहत
मौगी होबाक पीडा ?
मुदा, देवी मैया !
बूझल अइछ हमरा
मायक रुपमे
आ शक्तिक रुपमे
स्थापित कऽ कऽ
कऽ लेने अइछ कैद
अहाँंकेँ,
आ कऽ लेने अइछ कब्जा
अहाँंक सभ शक्ति ।
आ बूझल अइछ इहो
मौगी,
होएत नइँ जाधइर लैस
ज्ञान आ संघर्षक हथियारसँ
ने तऽ अपने स्वतन्त्र होएत
ने अहाँ ।

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